Monday, February 6, 2012

डॉ. सीगफ्रेड अर्न्स्ट ने कैसे कैंसर को शिकस्त दी

डॉ. सीगफ्रेड अर्न्स्ट ने कैसे कैंसर को शिकस्त दी 

डॉ. रोबर्ट विलनर का परिचय 

डॉ. रोबर्ट विलनर (जन्म – 21 जून, 1929 मृत्यु – 15 अप्रेल, 1995) फ्लोरिडा के विख्यात चिकित्सक थे। वे एम.डी. और पीएच.डी. थे और चालीस वर्षों तक रोगियों की चिकित्सा सेवा में संलग्न रहे। वे एक महान वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और चिंतक थे। उन्होंने “द कैंसर सोल्यूशन” और “डेडली डिसेप्शन : “द प्रूफ दैट सैक्स एण्ड एचआईवी डू नॉट कॉज एड्स” जैसी विवादास्पद पुस्तकें लिखी थी। 1978 में उनकी पत्नि को कैंसर हो गया था और कीमोथैरेपी के कारण बहुत वेदना और तकलीफ झेलनी पड़ी थी। उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने प्राकृतिक और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में रुचि लेना शुरू कर दिया। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने देश-विदेश की कई यात्राएं की, अनेकों वैकल्पिक चिकित्सकों तथा रोगियों के साक्षात्कार किया और बहुत प्रभावित हुए। वे अचंभित कि ये उपचार बहुत सरल, सुरक्षित और प्रभावशाली थे। उन्हें लगने लगा कि अब सचमुच वह समय आ गया है जब हमें कैंसर में कीमोथैरेपी और रेडियेशन जैसे मारक उपचार की जगह अन्य वैकल्पिक उपचार को भी अपनाना चाहिये।

फ्रुडेनस्टेड में डॉ. बुडविग से साक्षात्कार 

 कैंसर के वैकल्पिक उपचार की खोज के सिलसिले में मैं डॉ. जोहाना बुडविग से भी कई बार मिला। शुरू में तो मुझे भी बुडविग के उपचार और विज्ञान पर इतना विश्वास नहीं हो पा रहा था। एक बार मैं फ्रुडेनस्टेड में डॉ. बुडविग के घर पर उनसे साक्षात्कार कर रहा था। तभी अचानक फोन की घंटी बजी और उनकी जर्मन भाषा में एक लंबी वार्तालाप शुरू हो गई। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे फोन का रिसीवर थमाया और बोली, “यह डॉ. सीगफ्रेड अर्न्स्ट का फोन है, जिनके बारे में मैंने आपको बतलाया था, आप भी इनसे बात कर लीजिये। ये मेरे उपचार से ठीक होकर आज मजे से जी रहे है।” मेरी उनसे लगभग दस मिनट तक बात हुई। मैं उनके अनुभव सुन कर हैरान था, हालांकि उनके बारे डॉ. बुडविग मुझे बहुत कुछ बता चुकी थी। 

मैंने हॉटल आकर सारी बातें डायरी में लिख ली। अगले दिन शुक्रवार था और मैं स्टुटगर्ट से सुबह 8 बजे की फ्लाइट से फ्लोरिडा लौट जाना चाहता था। मैंने सोचा कि मैं आज ही स्टुटगर्ट चला जाऊं ताकि अगले दिन में सुबह जल्दी नहीं उठना पड़े। इसलिए मैंने हॉटल के रिशेप्सनिस्ट को फ्लाइट के टिकिट बुक करने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद वह आकर बोला कि स्टुटगर्ट की फ्लाइट में कोई सीट खाली नहीं है, लेकिन यदि मैं ट्रेन से म्यूनिक चला जाऊँ तो वहां से मुझे फ्लोरिडा के लिए आसानी से फ्लाइट मिल जायेगी। मुझे भी यही ठीक लगा। मैंने चेकऑउट किया और टेक्सी से सीधा रेल्वे-स्टेशन पहुँचा। म्यूनिक के लिए ट्रेन आने ही वाली थी। मैंने टिकिट लिया और वहीं बुक-स्टॉल से बुडविग की कुछ किताबें खरीद ली। इतने में ट्रेन भी प्लेटफॉर्म पर पहुँच गई थी। म्यूनिक यहाँ से 136 किलोमीटर दूर था। मौसम काफी सर्द था और हल्का सा कोहरा भी था। मैंने बुडविग की किताब खोली परन्तु मेरे दिमाग में तो अभी तक डॉ. अर्न्स्ट की एक-एक शब्द गूँज रही थी। 

इतने में ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी, मैंने बाहर देखा तो यह उल्म स्टेशन था, तभी याद आया कि डॉ. अर्न्स्ट यहीं तो रहते हैं। बस मेरा मन डॉ. अर्न्स्ट से मिलना चाह रहा था। बस मैंने तुरन्त अपना सूटकेस पकड़ा और वहीं उतर पड़ा। तब शाम के साढ़े सात बज चुके थे, सर्दी बढ़ चुकी थी और कोहरा भी घना हो चला था। मैंने स्टेशन से ही डॉ. अर्न्स्ट को फोन करके सुबह मिलने का समय ले लिया। उन्होंने कहा कल कि कल पूरा दिन हम साथ रहेंगे और दिन का भोजन भी साथ ही करेंगे। मैंने स्टेशन से सीधा गोल्डन ट्यूलिप हॉटल पहुँचा। मैं थक चुका था और भूख भी लग रही थी। मैंने वेटर के बुलाया और पूछा कि उनके रेस्टॉरेन्ट में क्या-क्या व्यंजन बनते हैं। उसने कहा, “सर, आज रात बहुत सर्द रहने वाली है। बर्फ भी गिर सकती है। इसलिए पहले आप सोनाबाथ का लुफ्त लें और फ्रेश हो जायें। हमारे हॉटल का सोनाबाथ बहुत मशहूर है। तब तक मैं आपके लिए पक्ड प्राइड ड्राई वाइन, एवोकाडो वसाबी सलाद और गर्म सिज़लिंग फज़ीता तैयार करवाता हूँ। 

अगला दिन मैंने डॉ. अर्न्स्ट के साथ बिताया। 78 वर्ष की उम्र में भी वे काफी बुद्धिमान, मिलनसार, सक्रिय और ऊर्जावान थे। उन्होंने कहा कि डॉ. विलनर, मेरी कहानी बड़ी दर्दनाक है। यह 18 मार्च, 1978 की बात है जब मेरे पेट में दर्द हुआ और मैंने उल्म के सर्जरी क्लिनिक में पेट का एक्स-रे करवाया। मेरे आमाशय में कैंसर की गांठ का पता चला और तीन दिन बाद 21 मार्च को हाइडलवर्ग की सर्जीकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रश्चियन हरफर्थ ने मेरा ऑपरेशन किया। जब मुझे होश आया तो मुझे बताया गया कि मेरी कैंसर बड़ी आंत में भी 1.1 इंच की गांठ हो गई था और कैंसर तिल्ली तक फैल गया था। हरफर्थ यह सब देख कर घबरा गये थे और बिना शल्य किये पेट सिल देना चाह रहे थे, तभी नर्सिंग इंचार्ज आर्थर बोह्म ने कहा कि अगर हमें डॉ. अर्न्स्ट की जान बचानी है तो हर जोखिम उठा कर भी ऑपरेशन करने चाहिये। टोली के बाकी लोंगो की भी यही राय थी। डॉ. हरफर्थ आखिर ऑपरेशन के लिए राजी हुए और मेरा ऑपरेशन साढ़े छः घन्टे चला। उन्होंने मेरा आमाशय निकाल दिया। आर्थर की गुजारिश पर फादर रुपर्ट मेयर से मेरे लिए प्रार्थना की। लेकिन आठ दिन बाद मेरे डायफ्राम के नीचे पस पड़ गया, जिसके कारण मुझे तेज बुखार हो गया। दोबारा ऑपरेशन करके पस निकाला गया, लेकिन दो दिन बाद ही मेरे फेफड़ों में पानी भर (पल्मोनरी एडीमा) गया। मैंने बहुत तकलीफ सही, सांस बहुत फूलती थी और तीन दिन तो मैं बेहोश ही रहा। मुझे नहीं लगता था कि मैं कभी ठीक हो पाऊँगा। मेरे लिए बहुत लोगों (2000 से ज्यादा) ने मन्नतें मांगी, प्रार्थनाएं की। जापान जैसे सुदूर देश में भी मेरे लिए प्रार्थना की गई। लेकिन आठ हफ्ते बाद धीरे-धीरे मेरी स्थिति में सुधार आने लगा। सभी के प्रयास और प्रार्थना से मैं आखिरकार स्वस्थ हो ही गया। मेरा ठीक होना सभी के लिए खुशी और अचरज की बात थी। 3 मई, 1987 को म्यूनिक के ओलम्पिक स्टेडियम में फादर रुपर्ट मेयर ने मेरे लिए एक सभा आयोजित की थी। इसके बाद फादर से मेरे करीबी रिश्ते बने रहे और वे समय-समय पर मेरी मदद भी करते रहे। परन्तु इससे बाद भी मुझे बहुत कमजोरी और पाचन समबन्धी विकार रहने लगा और मरीज देखना भी बंद करना पड़ा। मुझे मालूम था कि इस तरह के कैंसर में मरीज मुश्किल से एक साल जी पाते हैं। 

दो साल बाद फिर कैंसर ने फिर अपना असर दिखाया और पूरे पेट में फैल गया और अब कीमोथैरेपी ही एक मात्र उपचार बचा था। वे जानते थे कि कीमो के बड़े खतरनाक दुष्प्रभाव होंगे और फिर भी जीवन शायद ही बच पायेगा, इसलिए उन्होंने कीमो नहीं लेने का निर्णय लिया। तभी किसी ने उन्हें डॉ. बुडविग के प्रोटोकोल के बारे में बतलाया। वे तुरन्त डॉ. बुडविग से मिले, उनसे उपचार अच्छी तरह समझा और पूरे विश्वास से उनका उपचार लेना शुरू कर दिया। वे रोजअपने पेट पर एलडी ऑयल पेक लगा कर सोते थे और एलडी तेल की ही रोज मालिश भी करवाते थे। उन्हें इस उपचार से बहुत फायदा हुआ। मार्च, 1983 में उल्म के प्रोफेसर डॉ फाइफर ने उनकी जाच की और कहा कि वे पूरी तरह कैंसर से ठीक हो चुके हैं। यह सचमुच एक चमत्कार ही था। इसका पूरा श्रेय उन्होंने डॉ. बुडविग के उपचार और एलडी तेल को दिया। परन्तु इसके बाद भी उन्होंने अपनी जीवन-शैली को नहीं बिगाड़ा और रोज अलसी का तेल व पनीर लेना उनके जीवन का नियम ही बन चुका था। वे नियमित डॉ. बुडविग से संपर्क करते रहते थे। आज 15 वर्ष बाद भी वे पूर्णतया स्वस्थ हैं, बस थोड़ा बहुत पाचन संबन्धी विकार रहता है क्योंकि उनका आमाशय निकाल दिया गया था। 

आज उनके शरीर में आज कैंसर का नामोनिशान भी नहीं है। उन्होंने कहा कि सचमुच ये मेरा तीसरा जीवन है दूसरा जीवन प्रोफेसर हरफर्थ और तीसरा डॉ. बुडविग का दिया हुआ है। वे पूरे दिन उन्हें धन्यवाद देते रहे। उन्होंने कहा कि यह उपचार कैंसर का सबसे बढ़िया उपचार है। हां वे कुछ बातों में बुडविग से सहमत नहीं थे जैसे उन्होंने कहा कि यदि कैंसर की बड़ी गांठे हैं तो शल्य-क्रिया करनी ही चाहिये। जब कि बुडविग कहती थी शल्यक्रिया का निर्णय भी सोच समझ कर लेना चाहिये। डॉ. अर्न्स्ट से मेरी बहुत बातें हुई। उन्होंने बहुत सारी ऐसी बातें बतलाई जो मैं डॉ. बुडविग से सुन चुका था पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। डॉ. अर्न्स्ट से मुलाकात मेरे जीवन की एक यादगार घटना बन कर गई। इस उपचार को लेकर मेरे मन में जो भी संशय या शक थे, वे सब अर्न्स्ट से मिल कर दूर हो चुके थे। जब मैं उनसे विदा ले रहा था तभी उनके पुत्र डॉ. मार्टिन भी आ गये थे। उनसे भी कुछ मिनट अच्छी बातें हुई और मैं हॉटल के लिए निकल पड़ा। 

संदर्भ-ग्रंथ सूची - 
डॉ. अर्न्स्ट के उपचार का पूरा विवरण निम्न समाचार-पत्रों और पुस्तकों में प्रकाशित हुआ है।  
  • 4 मई 1997 का म्यूनिख चर्च अखबार 
  • डा. फ्रिट्ज की पुस्तक "शुट्जएन्जल वुन्डर" 
  • डॉ. रॉबर्ट विलनर एम.डी., पीएच.डी. की पुस्तक "The Cancer Solution" 
  • डा. जोहाना बुडविग की पुस्तक "Cancer-The Problem and the Solution"

No comments:

मैं गेहूं हूँ

लेखक डॉ. ओ.पी.वर्मा    मैं किसी पहचान का नहीं हूं मोहताज  मेरा नाम गेहूँ है, मैं भोजन का हूँ सरताज  अडानी, अंबानी को रखता हूँ मुट्ठी में  टा...